07 July 2019

क्या कभी सोचा है


हर पाँच सुबह सप्ताह में उठकर 
जब तुम काम पर जाते हो 
सड़क के ऊपर चलते हो 
क्या कभी सोचा है ?
जब तुम ऊपर चलते हो सड़क के 
मैं अंदर तैरता हूँ गटर में 
जब तुम बाहर सांस लेते हो 
मैं दम घोंटकर हाथ मैले करता हूँ 
तुम्हारे घरों के मैल से 
तुम्हारे मल से 
क्या कभी सोचा है ?
कौन हूँ मैं ?
तुम जब अपनी तरक्की पर फ़क्र करते हो 
वंदे मातरम् का उद्घोष करते हो 
भारत माता की जय बोलते हो 
तब उस माँ की इस संतान को याद करते हो ?
जो तुम्हारे सामने से गुज़रता है 
तो हवा की तरह देख नहीं पाते उसे
लेकिन उसी हवा में जब किसी बंद नाले की 
दुर्गन्ध तैरती हुई तुम्हारी नाक को परेशान करती है 
तब ढूंढ़ने लगते हो मुझे 
मुझे गंदगी में उतार कर 
स्वच्छ भारत बनाते हो 
फिर भी मुझे ख़ुद से दूर रखते हो 
अलग गिलास में पानी देते हो 
आईने में बिना शर्मिंदा हुए बाल संवारते हो 
और सुबह काम पर  निकल जाते हो | 



वतन की सर-ज़मीं से इश्क़ ओ उल्फ़त हम भी रखते हैं 
खटकती जो रहे दिल में वो हसरत हम भी रखते हैं

—  जोश मलसियानी